अब खड़े हो रहे सवाल,आखिर क्यों दोहरी जिम्मेदारी:अमित मिश्रा

मध्यप्रदेश की राजनीति में अब सिर्फ जमीनी नेता ही टिक पाएंगे और विशेष रूप से वो नेता जो सिंगरौली के कोयला खदान से लेकर चम्बल के टेढ़े-मेढ़े पहाड़ की अच्छी समझ रखता हों.वर्तमान में इस पैमाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खरे उतरे हैं.उन्हें चम्बल, विन्ध्य, मालवा, महाकौशल सब जगह का सियासी,सामाजिक टेस्ट बखूबी पता है.
मध्यप्रदेश में कम दिन की सरकार चलाने वाले कमलनाथ आखिर क्यों फेल हो गये,आखिर क्यों अब उनकी क्षमताओं पर सवाल खड़े हो रहे? ये सवाल अब अब सबके ज़ेहन में आ रहे हैं.अब हालात यह हैं की मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल इसलिए भी खड़े हो रहे हैं क्योंकि जब सरकार बचाने की कवायद शुरू हुई थी तब कमलनाथ ने बकायदा अपने विधायकों को यह विश्वास दिलाया था कि मैं अपनी रणनीति और मैनेजमेंट क्षमता के दम पर मध्य प्रदेश में सरकार को बचा लूंगा लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कमलनाथ पूरी तरह से दिग्विजय सिंह पर डिपेंड थे. मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के गठन के बाद से ही यह सवाल खड़े हो रहे थे कि सुपर सीएम के रूप में दिग्विजय सिंह सरकार चला रहे हैं. मंत्रिमंडल में जबरदस्त दखल के कारण कमलनाथ को कई बार सिंधिया खेमे के मंत्रियों द्वारा भी घेरा गया था लेकिन बात बिगड़ते और हालात खराब होते समय नहीं लगा सिंधिया समर्थित विधायक पार्टी से किनारा कर चले गए.प्रदेश में सरकार अकेले कमलनाथ के दम पर नहीं बनी थी और न ही चेहरा घोषित था.कई वर्षों तक विपक्ष में रहकर कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं ने लड़ाई लड़ी थी साथ में प्रदेश में संघर्षरत नेता अजय सिंह,अरुण यादव,सुरेश पचौरी,कांतिलाल भूरिया जैसे लोग ही थे जो विषम परिस्थियों में कांग्रेस का झंडा उठाया था.2018 विधानसभा चुनाव के पहले सिंधिया-कमलनाथ की जोड़ी के साथ दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा भी कारगर साबित हुई थी.
सरकार बनने से लेकर गिरने तक के घटनाक्रम के बाद आज की परिस्थितियों का जिम्मेदार कौन ?और उत्तर है प्रदेश अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ.मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद सबसे पहले संगठन में रिफार्म की जरूरत थी और साथ ही जिम्मेदारियां कुछ और नेताओं को देना थी लेकिन तब भी और अब भी कमलनाथ वन मैं आर्मी की तरह चल रहे हैं.प्रबंधन क्षमताएं फेल हो चुकी हैं और इस बात को कांग्रेस और कमलनाथ को स्वीकार करना होगा की मैदान में पकड़ शिवराज सिंह की कहीं ज्यादा है कमलनाथ से.
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की क्षमता का आंकलन इस बात से लगाया जा सकता है की भविष्य की लीडरशिप पार्टी छोड़कर जा रही है और ये कुछ नहीं कर पा रहे हैं.प्रदेशों में व्यापत गुटबाजी पर ऐसा लगता है की शीर्ष नेतृत्व चुटकी ले रहा हो या समझौता कराने की मंशा ही न हो.मध्यप्रदेश में कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष की दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं क्या यह सही है और अब सिंधिया के जाने के बाद अब भी क्या नेता प्रतिपक्ष पद के लिए किसी एक नाम पर कांग्रेस विधायक सहमत नहीं थे.अब पार्टी के अंदर ही इस बात को लेकर घमासान शुरू हो गया है पूर्व वन मंत्री उमंग सिंगार ने पहले ही यह सवाल खड़ा किया था कि अब वक्त पार्टी और संगठन को मजबूत करने का है ना कि व्यक्तिगत तौर पर नेता बनने का. उसके बाद बार-बार यह सवाल खड़े हो रहे थे कि प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ अब नेता प्रतिपक्ष की भी जिम्मेदारी कमलनाथ उठाएंगे क्या यह सही है एक ही नेता तमाम पदों पर कैसे बने रहना चाहता है .डॉक्टर गोविंद सिंह चंबल क्षेत्र के कद्दावर नेता है कई बार के विधायक हैं उनका नाम मध्य प्रदेश नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में सबसे आगे था लेकिन अंत में कमलनाथ ने निर्णय किया कि नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी वही निभाएंगे अब गोविंद सिंह ने भी साफ तौर पर कहा है की पार्टी में सब कुछ केंद्रीकृत हो गया है.गोविंद सिंह ने कहा की कमलनाथ अपनी उम्र के दबाव के बावजूद सुबह से शाम तक बहुत मेहनत करते हैं लेकिन सवाल यह है कि सब कुछ केंद्रीकृत हो गया है पार्टी में जनाधार वाले कई नेता और अगर लोगों को उनकी क्षमता के अनुसार जिम्मेदारी दी जाती तो वह पार्टी छोड़कर नहीं जाते.
जहां एक ओर कांग्रेस के विधायक भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर रहे हैं वहीं दूसरी और कमलनाथ विधायक दल की बैठक बुलाकर अपने विधायकों को कसम खिलवा रहे हैं लेकिन वक्त ऐसी चीजों का नहीं है. कांग्रेस के विधायकों को कमलनाथ की रणनीति पर पूरा भरोसा था कि वह सरकार बचाएंगे सरकार नहीं बची.सरकार से विपक्ष में आए विधायक टूटकर भाजपा में जा रहे हैं यह भी कांग्रेस के लिए बड़ी घटनाएं हैं. कांग्रेस को उपचुनाव में जाना है और विपक्ष में रहते हुए जनता की लड़ाई लड़ना है. कमलनाथ जिस कॉन्फिडेंस के साथ यह कह रहे हैं कि अगली विधायक दल की बैठक राजभवन में होगी ऐसा ही कॉन्फिडेंस सरकार गिरते वक्त उन्होंने दिखाया था कि सरकार मैं बचा लूंगा मेरे पास नंबर है.अब ऐसी बातों का शायद ही विधायक विश्वास करेंगे .अब पार्टी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन की आहट झलकने लगी है बची कसर उपचुनाव के परिणाम से साफ़ हो जाएगी.उपचुनाव यह भी निर्धारित करेंगे की क्या कमलनाथ मध्यप्रदेश की राजनीति करेंगे या शीर्ष नेतृत्व में बैठकर काम करेंगे लेकिन नेता प्रतिपक्ष के पद पर एक ऊर्जावान और लड़ाकू विधायक की जरूरत है और उम्र राजनीति में कई बार आड़े आती ही है.
Amit mishra
Editor vindhya times
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