सच्चे प्रेम के मायने बताती कहानी'उसने कहा था'

तन से तन का मिलन हो ना पाया तो क्या,मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं

सच्चे प्रेम के मायने बताती कहानी'उसने कहा था'

विगत 7जुलाई को सुप्रसिद्ध साहित्यकार चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" की 138वी जयंती थी।चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7जुलाई1883 में जयपुर में तथा मृत्यु 11सितंबर 1922को हुई थी।उनकी अमर कृति "कहानी उसने कहा था"के प्रकाशन की 106वी जयंती थी उसने कहा था कहानी सर्वप्रथम 1915में"सरस्वती"पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।महज 39वर्ष की आयु में साकेत धाम वासी बने चंद्रधर शर्मा गुलेरी यूं तो संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे ,वेदाचार्य थे व्याकरणाचार्य थे।वे निबंधकार ,कवि,कहानीकार सब थे। उन्होंने साहित्य की सभी मुख्य विधाओं में कुछ न कुछ अवश्य लिखा था लगभग 100 से अधिक निबंध लिखें किंतु सर्वाधिक प्रसिद्धि कालजई कृति "उसने कहा था" कहानी से मिली थी ।चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने यूं तो तीन प्रसिद्ध कहानियां लिखी बुद्धू का कांटा , सुखमय जीवन, और उसने कहा था, किंतु उसने कहा था ,अकेली कहानी ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी को विश्व साहित्य में अमर कर दिया। उसने कहा था और गुलेरी जी को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है। बीबीसी के एक सर्वे के मुताबिक उसने कहा था कहानी समकालीन विश्व की सर्वश्रेष्ठ 10 कहानियों में शुमार होती है इस कहानी का शीर्षक ,फलक ,और चरित्रों का गठन बेमिसाल है बेजोड़ है ।प्रेम बलिदान और त्याग की ऐसी पराकाष्ठा अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होती। मूलतः पंजाबी पृष्ठभूमि पर लिखी गई कहानी उसने कहा था प्रेम और युद्ध पर केंद्रित कहानी थी।उसने कहा था कहानी के अंत में ही स्पष्ट हो पाता है कि किसने कहा था ?किससे कहा था? क्या कहा था? कब कहा था ?युद्ध हमेशा प्रेम को लीलता और नष्ट करता है। आज जब "प्रेम" शब्द इतना बदनाम हो गया है कि आए दिन हत्या ,बलात्कार ,बदला, स्वार्थ लोभ ही इसके पर्यायवाची बन गए हैं ।प्रेम ,प्यार का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध, भौतिक दैहिक सुख हो गया है, ऐसे में उसने कहा था कहानी का नायक लहना सिंह अपने प्रेम के लिए किए गए वायदे के लिए प्राण उत्सर्ग कर देता है।प्रेम भी ऐसा कि किशोरावस्था की 12 वर्ष की अबोध उम्र में फिर 25 वर्ष बाद एक झलक के लिए सूबेदारनी से मिलन लेकिन इतना पवित्र प्रेम की सूबेदारिनी के सुहाग और बेटे की रक्षा का वादा करके खुद का बलिदान करने में कहीं कोई हिचक नहीं ,झिझक नहीं। "तेरी कुड़माई हो गई" यह कहानी की पंच लाइन ऐसी लोकप्रिय हो गई कि आज भी मेरे हम उम्र लोगों को याद है। "धत्त" शब्द इतना प्यारा और मासूम शब्द है कि हम सब आए दिन अपनी बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त करते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि प्रेम के वास्तविक स्वरूप का दर्शन करना हो तो हर युवक युवती को उसने कहा था कहानी अवश्य पढ़नी चाहिए। प्रेम वासना नहीं त्याग है ,कर्तव्य है ,बलिदान हैं जहां "श्रद्धा "होगी वही "स्नेह" होगा और जहां "स्नेह" होगा वही "प्रेम" पनपेगा। और यदि प्रेम पनप गया तो वह शाश्वत, सनातन, है। यह कभी ना कम होगा ना नष्ट होगा। उसने कहा था वास्तव में अंतर्निहित उदासी के साथ प्रेम वीरता और बलिदान की कहानी है उसने कहा था कहानी नायक लहना सिंह के प्रेम के लिए वरदान की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है।यह कहानी आज के प्रेमी प्रेमिकाओं की तरह ना कोई प्रेम आयोजन करती है ,ना प्रेम उत्सव मनाती है ,ना प्रेम सप्ताह मनाती है, ना प्रणय दिवस अर्थात वैलेंटाइन डे मनाती है, ना ही गुलाब लिए और दिए जाते हैं लेकिन अपने प्रेम के लिए "प्राण" दिए जाते हैं कहानी एक सीख देती है कि प्रेम, कर्तव्य और देश प्रेम एक ही सिक्के के विभिन्न पहलू हैं। हर अर्थ में प्रेम जोड़ता है प्रेम सिर्फ प्रदर्शन नहीं है यह महसूसने की चीज है प्रेम सदैव जोड़ता है दूरियां मायने नहीं रखती ।

मानस से ब्रेकअप तो कभी होता ही नहीं आज के युवाओं के लिए "उसने कहा था" सच्चे प्रेम के मायने सिखा सकती है उन्हें इस कहानी को अवश्य पढ़नी चाहिए उसे पढ़कर गुनकर, मनन करके शायद प्रेम शब्द का आशय सार्थक हो जाए स्वप्न जीवी युवाओं, युवतियों को "उसने कहा था" पढ़कर जरूर प्रेरणा लेनी चाहिए लहना सिंह का चरित्र एक ऐसा विशिष्ट चरित्र है जिसमें कई सारी खूबियां और नायकत्व कूट कूट कर भरा है।अपने भ्राता के प्रति अगाध प्रेम,पुत्र से अत्यधिक लगाव, मातृभूमि के प्रति सम्मान कूट-कूट कर भरा है गांव जिसकी "धमनी शिरा "में बहता है। और प्रेम तो उसके लिए सर्वोच्च वरीयता है, जीवन मृत्यु का सबब है।छोटी सी अल्प आयु में नन्हीं बालिका बाद की सूबेदारनी को बचाने के खातिर अपनी जान की परवाह ना करना, और 37 वर्ष की आयु में अपने परिवार और सपनो को धता बताते हुए उसको (सूबेदारनी को) दिए वचन की रक्षा के लिए, उसके घायल बेटे को उसके पति के साथ भेज कर खुद के लिए मृत्यु चुन लेना यह कोई महानायक ही कर सकता है। लहना सिंह चतुर भी है बुद्धिमान भी है तभी तो जर्मन सैनिक को बातों में लाकर और फंसा कर मार भी देता है। प्रेमी हो तो लहना सिंह जैसा ऐसी कामना हर नारी करती है। हर नारी ऐसा ही प्रेमी की युगों युगों तक अभिलाषा करती है। लहना सिंह और सूबेदारनी का प्रेम अजर अमर प्रेम माना जाएगा ।सच्चे प्रेम में रिश्ता शरीर का नहीं रूह (आत्मा)का होता है।उसने कहा था कहानी में "धत्त "कहानी का बहुत ही लोकप्रिय, प्यारा शब्द है । धत्त भी एक चरित्र है इस कहानी का ऐसा प्रतीत होता है । अगर दो प्रेमी "धत्त "कहना सीख जाएं तो "इडियट" "नॉनसेंस" जैसे घाती शब्दों की जरूरत ना पड़े ।अंत में लता जी द्वारा गाई यह पंक्तियां "तन से तन का मिलन हो ना पाया तो क्या ,मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं। प्रेम के वास्तविक स्वरूप से परिचित होना है तो "उसने कहा था कहानी" एक बार अवश्य पढ़ें, मेरा दावा है कि उसे आप बार-बार पढेंगे |

द्वारा: डॉक्टर रामानुज पाठक सतना, मध्यप्रदेश।

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