नहीं रहे अटल के हनुमान,पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का निधन

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का रविवार सुबह निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुख जताया है। पीएम मोदी ने कहा, जसवंत सिंह जी ने पूरी लगन के साथ हमारे देश की सेवा की। पहले एक सैनिक के रूप में और बाद में राजनीति के साथ अपने लंबे जुड़ाव के दौरान। वहीं, रक्षा मंत्री ने कहा, पूर्व मंत्री श्री जसवंत सिंह जी के निधन से गहरा दुख हुआ। उन्होंने रक्षा मंत्रालय के प्रभारी सहित कई क्षमताओं से देश की सेवा की।
जसवंत सिंह का जन्म तीन जनवरी, 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसौल गांव में हुआ था। पूर्व केंद्रीय मंत्री के पिता का नाम ठाकुर सरदार सिंहजी था और माता का नाम कुंवर बाईसा था। पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह ने अजमेर के मायो कॉलेज से बीए और बीएससी की डिग्री हासिल की। जसवंत सिंह की चाहत थी कि वह सेना में शामिल होकर देश की सेवा करें। उन्होंने अपने इस सपने को पूरा भी किया। जसवंत सिंह ने सेना के अफसर के तौर पर देश की सेवा की और सेवानिवृत्त हुए।
सिंह का विवाह 30 जून, 1963 को शीतल कुमारी से हुआ। दोनों के दो बच्चे हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। जसवंत सिंह भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सांसदों में से एक थे। 1980 या 2014 के बीच वह कभी उच्च सदन के सदस्य रहे या फिर वह निचले सदन के सदस्य रहे।
कैसा रहा जसवंत सिंह का राजनीतिक करियर
भाजपा नेता भैरों सिंह शेखावत ने उन्हें जनसंघ में शामिल किया, इसके बाद जसवंत सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। उनकी पहली राजनीतिक सफलता 1980 में आई जब उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया। उन्होंने 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13-दिवसीय सरकार में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
वाजपेयी के दो साल बाद फिर से प्रधानमंत्री बनने पर जसवंत सिंह 5 दिसंबर, 1998 से 1 जुलाई, 2002 तक भारत के विदेश मामलों के मंत्री बने। इस पद पर रहते हुए जसवंत ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति का निपटान किया। जुलाई 2002 में, जसवंत सिंह फिर से वित्त मंत्री बने। उन्होंने मई 2004 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारी
जसवंत सिंह को 2012 में एनडीए द्वारा उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकित किया गया। उन्होंने हामिद अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ा, जो यूपीए के उम्मीदवार थे। हालांकि, वह यह चुनाव हार गए।
जसवंत सिंह के विवाद
जसवंत सिंह विवादों में घिर गए, जब उनकी पुस्तक 'जिन्नाह: इंडिया-पार्टिशन-इंडिपेंडेंस' में दावा किया गया कि विभाजन के लिए जवाहरलाल नेहरू की केंद्रीकृत राजनीति जिम्मेदार थी। अपनी किताब में जसवंत ने मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की। इसके बाद भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।
हालांकि, 2010 में उन्हें फिर से भाजपा में शामिल किया गया। 2014 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। उनकी बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी को उतारा। इसके बाद जसवंत ने फिर भाजपा छोड़ दी। निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।
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